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चोर नहीं

अर्चना सुयाल कोमल है कमजोर नहीं तू, शेरनी है कोई चोर नहीं तू, काली दुर्गा और शिवानी, तू महामाया, तू रूद्रानी । पूजते हैं तुम्हें राजा-रानी, प्रेम से सुनते तेरी कहानी, भर-भर के आॅंखों में पानी, तुझे चढ़ाये गंगा का पानी । कौन बिगाड़ तेरा पायेगा, जो आयेगा मिट जायेगा, रूप देखकर डर जायेगा, क्रोध में तेरे जल जायेगा । हाथ पकड़े तो, तोड़ दे उसको, आॅंख दिखाये तो, फोड़ दे उसको, सच्चा रास्ता दिखा दे उसको, अच्छी सीख सिखा दे उसको । काली दुर्गा की शक्ति तुम, भोले नाथ की हो भक्ति तुम, वर पाओ भोले दानी से, काली, भवानी, रूद्रानी से । पाप का घड़ा फोड़ तुम डालो, पाप का बखिया, उधेड़ तुम डालो, गंगाजी में खूब नहाओ, बम-बम भोले शंकर गाओ ।।

तू ही मेरा प्यार सोनिया

अशोक स्‍नेही तू ही मेरा प्यार सोनिया होंठ सुर्ख़ टेसू दहके से  नयन मस्त भौंरे बहके से अंग-अंग चहके-चहके से चंचल भौंह-दुधारी चितवन- गालों पर अंगार सोनिया।। तू ही मेरा प्यार सोनिया पीठ-पाँव नाजुक कदली से  कुन्तल सावन की बदली से  मुक्त हास चंचल तितली से  दो उरोज दो अल्पनाओं से- ऊपर से ये हार सोनिया।।

दोहे मेरे गाँव के

इंद्रदेव शर्मा 'भारती'   जित देखूँ उत ही दिखै, गाँव-गाँव अंधियार उमर बिताई ढूँढते, दिनकर सा उजियार धनवानों के शीष पै, महल-दुमैली छाँव ऊपर नभ, नीचै धरा, निर्धनिया की ठाँव लिखी हवेली साहू को, लिखे खेत और बाग पर कच्चा कोठा लिखा, क्यों होरी के भाग हारे की हंडिया कढ़ा, दूध पियै गुड़ संग मखना वाले छाछ में, दिखंै गाँव के रंग धूल उड़ि गौधूलि की, गईयन लौटें धाम दिये जलैं हर द्वार पै, गाँवन उतरी शाम बैठ जुगाली कर रहे, गाय, भैंस और बैल भजन-आरती गाये हैं, गाँवन की खपरैल दाता कच्ची कोठरी, निर्धनिया के नाम पक्के कोठे लिख दिये, मुखियाओं के नाम पेड़ माँगने लग गये, बादल जी सै छाँव अब तो बरसो राम जी, पड़ैं तुम्हारे पाँव चूल्हे सुलगैं शाम के, लकड़ी करतीं बात चकला-बेलन बाजते, नाचैं तवा-परात तवे बगड़ की रोटियाँ, हाँडी खदकै साग जीरे, मिरचा, हींग का, छौंक लगावै आग ढोलक, ढपली, बाँसुरी, खो गयी रे खड़ताल आल्हा गूँजैं थे जहाँ, दिखैं न वो चैपाल कली खिलै कचनार की, मादक जिसकी गंध स्वाद कसैला होय है, होय बड़ी गुणवंत होरी, धनिया, गोबरा, साहू, जुम्मन शेख देख सकै तो गाँव को, दाता इनमें देख हरुआ काँधे पै सजै, हाथन हँसिया

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए

दुष्‍यंत कुमार    कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए। खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही, कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए। तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की, ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए। जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

कृषि में नीली-हरी काई का जैव-उर्वरक के रूप में उपयोग

डाॅ. मुकेश कुमार एसोसिएट प्रोफेसर, वनस्पतिविज्ञान विभाग, साहू जैन काॅलेज, नजीबाबाद- 246763 उ.प्र. भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की अधिकांश जनसंख्या का मुख्य भोजन चावल है। धान का उत्पादन करने वाले प्रदेशों में उत्तर प्रदेश का अग्रगण्य स्थान है। यहाँ लगभग 56.15 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान का उत्पादन किया जाता है। परंतु औसत उपज मात्र 18.27 कुंतल प्रति हेक्टेयर ही है जबकि अन्य प्रदेशों जैसे पंजाब, तमिलनाडु एवं हरियाणा में औसत उपज क्रमशः 35.10, 30.92 एवं 27.34 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। उपज में बढोत्तरी के लिए उन्नत बीजों के साथ-साथ उर्वरकों की समुचित मात्रा की भी आवश्यकता होती है। रासायनिक उर्वरक आयातित पैट्रोलियम पदार्थों से बनते हैं जिसके कारण ऐसे उर्वरकों के दाम दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं और यह लघु एवं सीमांत कृषकों की क्रय क्षमता के बाहर होते जा रहे हैं। अतः ऐसे किसान धान की भरपूर उपज प्राप्त करने में असमर्थ रह जाते हैं। साथ ही दूसरा मुख्य कारण यह है कि पानी भरे धान के खेतों में डाली गई रासायनिक नत्रजन उर्वरक का मात्र 35 प्रतिशत भाग ही धान के नवोद्भिद उपयोग कर पाते हैं, शेष नत्रजन उर्वर

ग्रामीण भारत: समस्याएं और भी बहुत हैं

डाॅ. नरेन्द्र पाल सिंह एसोसिएट प्रोफेसर, वाणिज्य विभाग,  साहू जैन काॅलेज नजीबाबाद उ.प्र. 246763 ई-मेल: drnps62@gmail.com भारतीय कृषि संबंधी समस्याएं एवं समाधान भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होते हुए भी यहाँ गरीबों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। आजादी के बाद से देश का संतुलित विकास करने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास की नीति को अपनाया है। भारत की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका का साधन खेती है तथा देश की कार्यशील जनसंख्या का 52 प्रतिशत भाग कृषि पर निर्भर है, जिनमें 31.7 प्रतिशत कृषक के रूप में तथा शेष मजदूर के रूप में खेती में कार्यरत है, देश की कुल जनसंख्या का 72.2 प्रतिशत भाग गाँव में वास करता हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय खेती ही है हमारे यहाँ कुल कृषि भूमि का लगभग 66 प्रतिशत भाग खाद्यान्न फसलों में तथा शेष 34 प्रतिशत भाग व्यापारिक फसलों के काम में लिया जाता है, देश में जनसंख्या की अधिकता के कारण कृषि जोतों का आकार निरंतर घटता जा रहा है, यहाँ की 80 प्रतिशत जोते दो हेक्टेयर या इससे भ

आजीविका: बदलता ग्रामीण जीवन

अक्षि त्यागी जीविका की योजना बनाना बताता है कि हमें जीवन में क्या करना है और हम क्या कर रहे हैं? जीविका का चयन एक कुंजी का कार्य करता है। कोई व्यक्ति अपने बारे में विश्लेषण करके उचित निर्णय ले सकता है। जीविका का चुनाव हमारा भविष्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गाँवों के अधिकांश लोग अपनी आजीविका कृषि या हस्तशिल्प से अर्जित करते हैं। सीमित कृषि भूमि के कारण रोजगार की तलाश में लोग कस्बों और शहरों का रुख कर रहे हैं लेकिन आवश्यक योग्यता के अभाव में कई बार उन्हें रोजगार पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सरकार इन समस्याओं को दूर करने के लिए नई कृषि तकनीकों के प्रयोग द्वारा उसी भूमि से उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के साथ-साथ गाँव के भीतर या समीप ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय कृषक नीति का शुभारंभ कृषि और सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय द्वारा सितंबर 2007 में किया गया। इस नीति का लक्ष्य किसानों की शुद्ध आय में बढ़ोत्तरी करना और उन्हें उनकी फसलों का अच्छा मूल्य दिलाना है। सरकार भूमि और जल सुविधाओं के विकास के लिए काम कर रही है। इस नीति के तहत मंत्रालय के पास