Sunday, February 16, 2020

मुझको मत मरवाय री

 



गीतकार इन्द्रदेव भारती


 



कन्या भ्रूण  की  गुहार का 

ये गीत  'शोधादर्श' पत्रिका  

में प्रकाशित करने के लिये

संपादक श्री अमन  कुमार

त्यागी का हार्दिक आभार।

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मुझको  मत  मरवाय  री ।

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माँ !  मैं  तेरी  सोनचिरैया, 

मुझको  मत  मरवाय  री ।

काली गैया  जान  मुझे  तू,

प्राण - दान दिलवाय री ।

 

हायरी मैया,क्या-क्या दैया

जाने    मुझे   दबोचे   री ।

यहाँ-वहाँ से,जहाँ-तहाँ से,

काटे  है  री,.....नोचे  री ।

सहा न जावे,और तड़पावे

चीख़  निकलती जाय री ।

मुझको.................री ।।

 

यह कटी  री, उँगली मेरी,

कटा अँगूठा जड़  से  री ।

पंजा काटा, घुटना काटा,

टाँग कटी झट धड़ से री ।

माँ लंगड़ी ही,जी लूँगी री,

अब  तो  दे  रुकवाय री ।

मुझको.................री ।।

 

पेट भी  काटा, गुर्दा काटा,

आँत औ दिल झटके में री ।

कटी सुराही, सी गर्दन भी,

पड़े   फेफड़े  फट  के  री ।

नोने - नोने  हाथ  सलोने,

कटे   पड़े   छितराय  री ।

मुझको..................री ।।

 

आँख निकाली कमलकली सी

गुल - गुलाब से  होंठ  कटे ।

नाक कटी री,  तोते - जैसी,

एक-एक करके  कान कटे ।

जीभ कटी वो,माँ कहती जो,

कंठ  रहा......गुंगयाय  री ।

मुझको...................री ।।

 

पसली  तोड़ी, हसली  तोड़ी,

तोड़ी   रीढ़   की   हड्डी  री ।

कान्धे  तोड़े,   कूल्हे   तोड़े,

उड़ी  खुपड़िया  धज्जी री ।

फूट  रहे  रे,  ख़ून  के  धारे,

अंग - अंग   से   हाय  री ।

मुझको...................री ।।

 

पप्पी   लेती,   नहीं  अघाती,

जिसके  मखना  गालों  की ।

आज उसीकी खाल खींचली,

रेशमिया   से    बालों   की ।

उधड़े - उधड़े, माँस लोथड़े,

पड़े  -  पड़े   डकराय  री ।

मुझको....................री ।।

    

गीतकार इंद्रदेव भारती

"भरतीयम"   

ए-3, आदर्श नगर,

नजीबाबाद - 246763

( बिजनौर ) उ.प्र.

मो. 99 27 40 11 11


Saturday, February 15, 2020

बाबा नागार्जुन को पढ़ते हुए


इन्द्रदेव भारती



भिखुआ उजरत लेके आया, बहुत दिनों के बाद
झोपड़िया ने दिया जलाया, बहुत दिनों के बाद


खाली डिब्बे और कनस्तर फूले नहीं समाये
नून, मिरच, घी, आटा आया, बहुत दिनों के बाद


हरिया हरी मिरच ले आया, धनिया, धनिया लाई
सिल ने बट्टे से पिसवाया, बहुत दिनों के बाद


चकला, बेलन, तवा, चीमटा खड़के बहुत दिनों में
चूल्हा चन्दरो ने सुलगाया, बहुत दिनों के बाद


फूल के कुप्पा हो गयी रोटी, दाल खुशी से उबली
भात ने चौके को महकाया, बहुत दिनों के बाद


काली कुतिया कूँ-कूँ करके आ बैठी है दुआरे
छक कर फ़ाक़ो ने फिर खाया, बहुत दिनों के बाद


दिन में होली, रात दीवाली, निर्धनिया की भैया
घर-भर ने त्योहार मनाया, बहुत दिनों के बाद



ए-3, आदर्श नगर, नजीबाबाद-246763 (बिजनौर) उप्र


एक बेबाक शख्सियत : इस्मत चुगताई

आरती कुमारी

पीएच. डी. हिंदी विभाग, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, त्रिपुरा, अगरतला

 

         साहित्य के क्षेत्र में अनेक विद्वानों का योगदान रहा हैं, वर्तमान  में विभिन्न विषयों से जुड़े, एक नई दृष्टि लिए रचनाकार हमारे समक्ष आ चुके हैं ।  भारतीय साहित्य में इस्मत चुगताई का भी एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जिनका जन्म 21 अगस्त 1915 ई .  को बदायूं उत्तरप्रदेश में हुआ था। जिनका पूरा जीवन संघर्षशील तथा समस्याओं से घिरा रहा परंतु कभी  भी जिंदगी से हार नहीं मानती,जितना अनुभव जीवन में मिल पाया उसे जीवन के अंत समय तक कभी भूल नहीं पाई ।  इस्मत चुगताई उर्दू की प्रमुख व प्रसिद्ध लेखिका के रूप में जानी जाती रही हैं , उनकी प्रत्येक रचना विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं ।  वह एक स्वतंत्र विचारक , निडर , बेखौफ, जिद्दी , जवाबदेही, तार्किक तथा विरोधी स्वभाव की थी जिन्होंने अपने जीवन में उन सभी बातों का विरोध किया जिससे जिंदगी एक जगह थम सी जा रही हो ।  इस्मत चुगताई का परिवार एक पितृसत्तात्मक विचारों वाला था उसके बावजूद वह अपने परिवार के प्रत्येक सदस्यों से विपरीत रही । स्त्रियों की समस्याओं को लेकर आजादी से पहले व बाद में अनेक चर्चा -परिचर्चा होती रही है परंतु ध्यान देने वाली बात यह है कि महिलाओं की समस्याएं दिन -प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । साहित्य समाज का दर्पण है, वह समाज की प्रत्येक समस्या उजागर करने का पूरा प्रयास करता है उसका उद्देशय यह रहता है कि  समाज का प्रत्येक वर्ग उससे प्रभावित होकर उसके समाधान के लिए अग्रसर हो सके ।

      इस्मत चुगताई के लेखन की शुरुआत हमारे देश भारत की स्वतंत्रता के पूर्व से हो चुकी थी, जिन्होंने समाज की प्रत्येक समस्या पर अपनी नज़र रखते हुए उसका अनुभव प्राप्त करती है । उनकी रचनाओं में अनेक विषय सभी पाठकों को चकित कर देते है तथा उसके साथ – साथ उनके बेबाकी व्यक्तित्व को  प्रस्तुत भी करते है । उनकी अनेक कहानी संग्रह जिसमें – चोटें, छुई -मुई, एक बात, कलियां, एक रात, शैतान, आधी औरत आधा ख्वाब आदि है , जिसमें स्त्रियों की सभी समस्याओं को आधार बनाकर लिखा गया है ।  इस्मत चुगताई की कहानियाँ स्त्री जीवन, उनका संघर्ष , पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री -पुरुष मतभेद, मुस्लिम समाज में तीन तलाक की समस्या, नारी अस्मिता, स्त्री मन का द्वन्द, दहेज प्रथा, आदि समस्याओं को प्रस्तुत करती है । वह अपने लेखन के विषय में पूरे आत्मविश्वास से कहती थी कि-

        “मेरी कहानियों को किसी सफाई की आवश्यकता हैं ऐसा मैंने कभी महसूस नहीं किया”

इस्मत अपने लेखन के प्रति सचेत थी उनके मन में कभी भी किसी तरह का भय नहीं आया तथा ऐसा कभी उन्हें नहीं लगा की जो कुछ लिखा हैं वह गलत हैं।  जीवन के प्रत्येक पक्ष को उकेरते हुए समाज की सच्चाई को अपनी रचनाओं के माध्यम से रु-ब -रु कराती हुई दिखाई पड़ती है ।

           

     इस्मत चुगताई वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसमें समाज की पूरी पृष्टभूमि नज़र आती हैं । स्त्रियों को पितृसत्तात्मक समाज ने अनेक रूढ़ियों व परंपराओं में इस प्रकार जकड़ा हुआ है जिसके  बाहर आज भी वह नहीं निकल पाई । इस्मत अपना लेखन इस बेबाकी से करती थी कि किसी भी आने वाली समस्या का भय मन में नहीं रहता था। ‘लिहाफ़’  उनकी एक ऐसी कहानी है जिसके लिए उन्हें जेल के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं ।  इस्मत को उस वक्त भी किसी तरह का भय नहीं होता जब पुलिस उनको जेल ले जाने के लिए आती है तब वह कहती हैं –

              “जेल में ? अरे मुझे जेल देखने का बहुत शौक हैं कितनी दफा यूसुफ से कह चुकी हूँ जेल ले चलो मगर हँसता है कमबख्त और टाल जाता हैं । इंस्पेक्टर साहब मुझे जेल ले चलिए, आप हथकड़ियाँ लाए हैं”

यह वाक्य इस्मत चुगताई के व्यक्तित्व को दर्शाता है क्योंकि वह जानती थी कि समाज सच्चाई को जानकर भयभीत हो सकता हैं परंतु उनकी कहानी समाज की वास्तविक घटनाओं पर आधारित है वो गलत नहीं हैं ।

          इस्मत चुगताई के अनेक उपन्यास है जो निम्नलिखित है - जिद्दी, टेढ़ी लकीर, दिल की दुनिया, सौदाई, जंगली कबूतर, मासूम, एक कतरा-ए-खून, अजीब आदमी, बाँदी बहरूप नगर । इसके साथ -साथ उनकी आत्मकथा- कागजी है पैरहन भी काफी चर्चित हो चुकी है ।  इस्मत चुगताई मुस्लिम समाज से संबंध रखती थी जहां कई बंदिशे स्त्रियों पर थे, जिसका सामना इस्मत को भी करना पड़ा लेकिन वह उसका हमेशा विरोध करती रही । पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री अपनी अस्मिता के लिए सदियों से संघर्ष करती रही हैं , आज स्त्रियां अपनी एक पहचान बना चुकी हैं ।  परंतु इतने संघर्षों के बावजूद भी वर्तमान में अनेक समस्याओं से स्त्रियाँ जूझ रही हैं । इस्मत को पहली बार बुर्का ओढ़ना पड़ा तब वह अधिक क्रोधित होती है उसके विषय में कहती हैं कि :-

            “मुझे पहली बार जब बुर्का ओढ़ना पड़ा और बता नहीं सकती कि अपमान की भावना ने कई बार मुझे पटरी पर कट जाने की सलाह दी”

 यह  सच है जब किसी की अस्मिता खतरे में हो तब उसे बेहद निराशाजनक स्थिति से गुजरना पड़ता है ।  एक स्त्री पुरुष के समान ही समाज में अपना योगदान देती है लेकिन जब उसे समाज में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है तब  अधिक कष्ट का अनुभव करती है।

      इस्मत चुगताई बचपन से ही पढ़ने में रुचि रखती थी उनमें एक जिज्ञासा का भाव हमेशा बना रहा।  उनके मन में हमेशा अपने पितृसत्तात्मक समाज के प्रति एक क्रोध का भाव बना रहता था क्योंकि वह समाज में स्त्री की प्रत्येक कार्यों पर नज़र रखती।  उनके मन में इस बात का दुख व निराशा बनी रहती कि स्त्रियाँ घर-परिवार में शोषित, अत्याचारों का सामाना  करती हैं उसका विरोध क्यों नहीं करती ? जीवन में उदासी लिए जिंदगी गुजारने को मजबूर है । “चौथी का जोड़ा” इस्मत की एक ऐसी कहानी जिसमें स्त्री मन व निम्न मध्यवर्गीय समाज की दशा का चित्रण बहुत ही स्पष्टता से देखा जा सकता हैं । इस कहानी में इस्मत स्पष्ट रूप से दिखाती है कि जब पुरुष वर्ग स्त्री की भावनाओं का सम्मान न करें उस पर अत्याचार करें तो उसे अस्वीकार करना ही एक स्त्री का धर्म होना चाहिए –

          “क्या मेरी आपा मर्द की भूखी है ? नहीं वह भूख के एहसास से पहले ही सहम चुकी है, मर्द का तसव्वुर उनके जेहन में एक उमंग बनकर नहीं उभरा बल्कि रोटी कपड़े का सवाल बनकर उभरा है”

       इस्मत चुगताई का लेखन बेहद प्रभावित करता है, उन समस्याओं से रु-ब-रु कराता है जो समाज का प्रत्येक वर्ग झेलता हुआ नज़र आता हैं ।  यदि कोई स्त्री समाज के नियमों के विरुद्ध सवाल खड़ी करती है तब समाज उसे अच्छे -बुरे के कठघरे में लाकर खड़ा कर देता हैं । इस्मत समाज की कमियों को पूरे साहस, स्पष्टता व सहनशीलता से प्रकाशित करती थी उनके मन में किसी भी तरह का भय नहीं था । उन्हें स्वयं पर पूरा आत्मविश्वास था की जो कुछ भी वो लिख रही हैं वह एकदम सही हैं वे इस बात को मानती थी कि उनका लेखन ही जीवन जीने का आधार है इसकी मौजूदगी में वे खुद को अकेलापन महसूस नहीं करती ।  समाज में स्त्री को शृंगार तथा आभूषण से सजने -सवरने के बीच घेर कर रखा जाता रहा है जो स्त्री सज -सवरकर रहती है उसे विशेष महत्व दिया जाता रहा, परंतु इसकी आलोचना करते हुए इस्मत ने अपनी कहानी ‘निवाला’ में  कहा है कि –

              “क्या औरत होना काफी नहीं एक निवाले में आचार, चटनी, मुरब्बा क्यों”

      इस्मत का लेखन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थितियों को बहुत ही सहजता से उल्लेखित करता है। उसके बीच एक स्त्री किन -किन समस्याओं से गुजरती है, समाज में स्त्री पुरुष मतभेद स्त्रियों के लिए अनेक समस्या उत्पन्न करता हैं ।  इस्मत ने अपने जीवन में प्रत्येक मोड़ पर पूरे साहस के साथ अपनी जिम्मेदारी को पूरा करती रही चाहे वह अपना परिवार हो या समाज ।  इस्मत अपने पति  शाहिद के विषय में कहती हैं कि –

           “मर्द औरत को पूज कर देवी बना सकता हैं, वो उसे मोहब्बत दे सकता हैं इज्जत दे सकता है सिर्फ बराबरी का दर्जा नहीं दे सकता ।  शाहिद ने बराबरी का दर्जा दिया इसीलिए हम दोनों ने एक अच्छी घरेलू जिंदगी गुजारी”

इस्मत चुगताई के पास जीवन का अनुभव था, समाज स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कमजोर समझता रहा है।  प्रत्येक कार्यों में स्त्री-पुरुष का विभाजन दिखाई पड़ता है, स्त्री को अबला, देवी, त्यागी का रूप माना जाता परंतु उसे समानता का अधिकार नहीं दिया जाता है ।  वर्तमान समय में संविधान में स्त्री -पुरुष को समानता का अधिकार दिया गया है लेकिन भेदभाव का अनुभव महिलाएं आज भी अनेक क्षेत्रों में  करती हैं।    

           अत: इस्मत चुगताई समाज की जमीनी हकीकत को अपने समय में पहचान चुकी थी उनका लेखन आज भी प्रासंगिक है।  इस्मत के लेखन पर चेखव, बर्नाड शॉ, रशीदजहाँ, डिक्सन, प्रेमचंद तथा महात्मा गांधी आदि का प्रभाव दिखाई पड़ता हैं ।  इस्मत के समय में मंटो एक ऐसे लेखक थे जो उनके सबसे निकट रहे वह इस्मत के विचारों से पूरी तरह वाकिफ थे ।  मंटो कहते थे कि  इस्मत का कलम व जबान दोनों बहुत तेज रफ्तार में चलते है उस समय वह कुछ भी नहीं सोचती थी कि इसका प्रभाव क्या होगा ।  स्वतंत्र विचारों से जुड़ी इस्मत चुगताई समाज की परवाह किए बिना जीवन में प्रत्येक मुकाम हासिल करती हैं  जिसकी वह हकदार थी ।  उनके रास्ते में आने वाली परेशानियों को पूरे हौसले के साथ सामना करती हैं ।  उनकी रचनाओं में भी स्त्री, पितृसत्तात्मक समाज में जिस घुटनभरी जिंदगी का सामना करती है उस पर दृष्टि डाला गया हैं । भाषा लेखक की एक शक्ति होती है जिसके माध्यम से वह अपनी अलग पहचान बनाता हैं, इस्मत ने जिस भाषा का प्रयोग किया वह समाज को चकित व अत्यंत प्रभावित करने वाला हैं । इस्मत की भाषा में विरोध, बौद्धिकता, शोर, चंचलता, तेज रफ़्तार, निर्भय और साहस का भाव सब कुछ स्पष्ट रूप से दिखाई देता हैं । एक स्त्री का दर्द, मौलिकता, समाज की सच्चाई, अनुभव को व्यक्त करने की सहज अभिव्यक्ति, तार्किक भाव तथा प्रभावित करने वाली भाषा सम्पूर्ण घटनाओं को इस्मत ने व्यक्त किया हैं ।  समाज की एक अच्छी परख इस्मत के पास थी  और सच में जो व्यक्ति सच्चाई को जानता है वह किसी भी कष्ट से घबराता नहीं है बल्कि अपनी बात बहुत ही सहनशीलता व सहजता से प्रस्तुत करता है । वह किसी भी प्रश्न से भयभीत नहीं होता, जबकि वह धैर्य के साथ सभी प्रश्नों का जवाब देने में ही विश्वास करता है । इस्मत चुगताई का व्यक्तिव भी ऐसा ही था, लेखन के कारण समाज के बेरूखे स्वभाव, आलोचना का सामना करना पड़ा ।  परंतु इस्मत ने  कभी भी अपने हौसले को कम नहीं होने दिया ।  इस्मत चुगताई ने लेखन के साथ -साथ फिल्मों के लिए पटकथा लिखते हुए ‘जुनून’ फिल्म में पात्र की भूमिका भी अदा करती हैं ।  वह अपनी रचनाओं के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, इकबाल सम्मान , नेहरू अवार्ड, आदि पुरस्कार हासिल कर चुकी थी ।  इस्मत ने अपने जीवन में लेखिका की भूमिका अत्यंत जिम्मेदारी, कर्तव्यनिष्टता के भाव को समझते हुए अपनी भूमिका अदा करती हैं ।   

        आज भारत की आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्त्रियों की समस्याएं अधिक बढ़ती जा रही है जिस पर ध्यान देना अनिवार्य है । इस्मत चुगताई पहली नारीवादी लेखिका मानी जाती हैं जो स्त्री के मुद्दों को बेहद अच्छे ढंग से प्रस्तुत करती थी । वह समाज की हर एक समस्या को हु-ब-हु प्रकाशित करती थी, समाज जिन रूढ़ियों , अंधविश्वासों से ग्रस्त होकर महिलाओं पर अत्याचार करता था उसका विरोध करते हुए अपने स्वभाव अनुसार उस पर सीधा चोट करती थी जिस कारण उनका लेखन अधिक महत्वपूर्ण लगता हैं ।  इस्मत का निधन 24 अक्टूबर 1991 ई .  को हुआ, आज भी उनका लेखन उनके  अनुभव को जीवित रखता हैं।   

 

संदर्भ ग्रंथ सूची –

  1. पॉल सुकृता संपा- कुमार अमितेश. (2016 ). इस्मत आपा . नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन .
  2. लिप्यंतरण - रिजवी शबनम. (2016 ). छुई -मुई . नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन .
  3. लिप्यंतरण - सुरजीत. (2016 ). लिहाफ . नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन .
  4. लिप्यंतरण- इफ़तीखार अंजुम. (2014 ). कागजी है पैरहन . नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन .

Monday, February 3, 2020

एकदिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक उन्नयन कार्यशाला

 





बैंगलोर, बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज की ओर से एकदिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक उन्नयन कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 75 हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओंऔर छात्राओं ने प्रतिभागिता निभाई। अवसर पर बेंगलुरु केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं बेंगलुर विश्वविद्यालय के बी.काम. द्बितीय सेमेस्टर की पाठ्यपुस्तक 'काव्य मधुवन' एवं 'काव्य निर्झर' की कविताओं व उनके कवियों पर विशेषज्ञों के साथ चर्चा की गई। 


कार्यशाला का उद्घाटन मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के परामर्शी प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने बतौर मुख्य किया। उन्होंने दोनों कार्यसत्रों की अध्यक्षता भी की। 


मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने सभी आमंत्रित जनों के बारे में अपने स्नेह को प्रदर्शित करते हुए सभी को शुभकामनाएं दीं व सभी प्रतिभागियों को कार्यक्रम के विषय पर वार्ता के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कविता की ताकत को सभी भिन्नताओं व कुंठाओं के तालों को खोलने की चाबी बताया व इसे व्यक्तित्व के विकास की संभावनाओं का हिस्सा बताया। हिंदी कविता के शिक्षण के क्षेत्र में इस प्रकार के कार्यक्रमों से छात्रों व अध्यापकों के मार्गदर्शन के लिए मुख्य अतिथि ने ऐसे कार्यक्रमों के बार बार होने पर बल दिया । 


बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज की प्रधानाचार्या प्रोफेसर एस्थर प्रसन्नकुमार व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार यादव ने भी कविता-शिक्षण की आवश्यकता और पेचीदगियों पर सूक्ष्म चर्चा की।


दो कार्यसत्रों के दौरान डॉ. रेणु शुक्ला, डॉ. अरविंद कुमार, डॉ कोयल बिस्वास, डॉ. ज्ञान चंद मर्मज्ञ, डॉ. राजेश्वरी वीएम , डॉ. जी नीरजा डॉ. एम. गीताश्री ने बतौर विषय विशेषज्ञ  निर्धारित कविताओं की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा की।


प्रथम सत्र में  हरिवंशराय बच्चन की कविता - जुगनू, जगदीश गुप्त की कविता - सच हम नहीं ,सच तुम नहीं, नागार्जुन की कविता -कालिदास सच सच बतलाना, अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - मन का संतोष और जयशंकर प्रसाद की कविता -- अशोक की चिंता पर चर्चा व वार्ता की गई। द्वितीय सत्र कवि गोपाल दास नीरज की कविता -स्वप्न झरे  फूल से गीत चुभे शूल से, रामधारी सिंह दिनकर की कविता - पुरुरवा और उर्वशी पर केंद्रित रहा।


प्रतिभागियों ने बताया कि कार्यशाला छात्रों व अध्यापकों के लिए बहुत ज्ञानवर्धक  रही। कार्यक्रम की सफल प्रस्तुति का अंत राष्ट्रगान से हुआ । 


प्रस्तुति- डॉ . विनय कुमार यादव


अध्यक्ष,हिंदी विभाग, बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज, बैंगलोर।


Wednesday, January 22, 2020

वैशु


निधि भंडारे


 


निशि बहुत बेचेन थी| रह रहकर उसके मन में वैशु का खयाल आ रहा था| अभी 16 साल की उम्र, छोटी बच्ची और शादी भी हो गई| वैशु, 10 दिन ही हुए थे वैशु को उसके ऑफिस में काम करते हुए| निशि को याद है सोनाली ने बताया था, “म्याम, एक लड़की आयी है, उसेही काम की बहुत ज़रूरत है, सफाई के लिए रख लू?
“तुम्हे ठीक लगता है तो रख लों,” सोनाली शादी में गई थी तो निशि जल्दी ऑफिस गई| जैसे ही ऑफिस पहुँची तो बाहर सीधियों में एक लड़की बैठी| निशि को लगा कोई बैठी होगी और निशि ने ऑफिस का ताला खोला और अंदर चली गई| तभी 5 मिनट बाद वही लड़की अंदर आयी|


नमस्ते मैडम” वो बोली|


नमस्ते, निशि ने जवाब दिया|  


मैडम, मैं वैशु, आपके ऑफिस में सफाई करती हूं, वो बोली|
निशि कुछ देर कुछ ना बोल पाई, छुपचाप उसे देखती रह गई|
मैडम, पंधरा साल, अभी दसवी में हूं, वैशु धीरे से बोली,


तो बेटा, पढाई करो, ये सब काम क्यों करती हो? निशि ने वैशु से कहा|
मैडम, अब पढाई नहीं होगी, शादी हो गई ना, वैशु बोली|


कब हुई शादी? निशि ने पूछा|


नौ महीने हो गये, वैशु ने बताया|


निशि को वैशु के घरवालों पर बहुत गुस्सा आया|


उसने पूछा, तुम्हारे माता पिता ने तुम्हारी इतनी छोटी सी उमर में शादी कैसे कर दि? निशि ने पूछा|


वो मैडम, माँ ने कर दि| वैशु बोली|



कैसी माँ है, ऐसे कैसे कर दी? निशि ने थोड़ा जोर से बोला|


मैडम, मेरी माँ की कोई गलती नहीं, वो मेरे पापा बहुत पीते है ना इसलिए, घर में पैसा नहीं होता, वैशु बोली|


अरे बेटा, तो ये काम मत करो, पढाई करो, मैं दाखिला करती हूं तुम्हारा, निशि बोली|



नहीं मैडम, मुझे अब नहीं पढ़ना, बस काम करूंगी और पति का हात बटाउंगी, वैशु बोली|



निशि उस बच्ची को देखती रह गई| निशि का कोचिंग इंस्टिट्यूट ही था, जिसमे दसवी, ग्यारवी, बारवी के बच्चे पढने आते थे| वो यही सोचती रह गई की ये वही कुछ बच्चों से उम्र में कितनी छोटी और उसका नशीब ऐसा|



तभी वैशु बोली, मैडम आप मुझे काम से तो नहीं निकालोगी, सोनाली दीदी बोल रही थी की जब आपको मेरी उम्र का पता चलेगा तो आप काम नहीं करने दोगी| वैशु बोली|


निशि बस मुस्कुरायी, कुछ ना बोली|


अच्चा मैडम, मैं काम कर लू आप बैठो, वैशु बोली, और काम करने क्लास रूम में चली गई|



तभी निशि को याद आया की निशि कैसे बाहर बैठी थी चुपचाप| निशि ने आवाज लगायी, वैशु,


वैशु, जी मैडम, और बाहर आयी|



वैशु जब मैं आयी तो तुम बाहर बैठी थी, सोनाली बोली, थी की तुम्हें एक छबी थी है ना? फिर ऐसे क्यों बैठी थी निशि ने पूछा,



वो मैडम, मुझे अच्छा लगता है यहां, बस यूँही, वैशु बोली|



निशि समझ गई की वो कुछ छुपा रही है| कुछ ही देर में वैशु काम करते चली गई| दिन भर निशि का कहीं मन नहीं लगा| उसके मन में बस वैशु का ही खयाल आता रहा| उसने सोचा ये तो वो एक वैशु से मिली, और ना जाने कितनी ऐसी वैशु होगीं|




तभी रवि ने पीछे से आवाज दि|


निशि, निशि,


निशि अपने पति रवि की आवाज सुनकर चौक पड़ी|


अरे क्या हुआ मेमसाहब को? रवि ने निशि से पूछा|


निशि ने रवि को सब कुछ बताया| रवि भी सोच में पड गया| कैसी अजीब दुनिया है ना, कैसा नसीब होता है कुछ लोगों का? रवि बोला|

तुम इतना परेशान मत हो निशि, सोचो वो तुम्हारे यहां काम पर आ रही है, उसके लिए कितना अच्छा. कहीं और गई होती तो ना जाने कैसे लोग मिलते, हैना, अब तुमसे जितना होगा उसके लिए करो, सिंपल, रवि बोला|



चलो अब खाना खाते हैं, ऐसे सोचने से कुछ नहीं होगा, करने से होगा, रवि निशि से बोला|


निशि और रवि ने खाना खाया और आराम करने चले गये| रवि तो बिस्तर पर जाते ही सो गया पर निशि तब भी वैशु के बारे में सोच रही थी| वो खुदके बारे में सोचने लगी की वो कितनी बड़ी बड़ी बातें करती थी पर वैशु का सोचकर इतनी लाचार महसूस कर रही थी| फिर पता नहीं कब उसकी आँख लग गई| सुबह अलार्म बोला तब उसकी आंख खुली| देखा तो रवि बिस्तर पर नहीं था|



बाहर आयी तो देखा रवि अकबार पढ़ रहा है| निशि को देखते ही बोला, मैडम, अदरक की चाय पिलाओ ना गरम गरम, आज ठंड बहुत है”


निशि किचेन की तरफ मुड़ गई| रवि 10 बजे ऑफिस निकल गये| निशि भी उसीके बाद निकल गई| आज भी सोनाली नहीं आने वाली थी| निशि जैसे ही ऑफिस पहुची तो देखा वैशु टेबल पौछ रही थी|



गुड मोर्निंग मैडम, वैशु निशि को देखते ही मुस्कुराते हुए बोली|


गुड मोर्निंग बेटा, निशि बोली|


तभी निशि की नजर उसके हाथ पर गई| हाथ पर झकम था| निशि ने पूछा, बेटा ये क्या हुआ?



कुछ नहीं मैडम हाथ जल गया खाना बनाते वक़्त, कल ननद आयी थी रात को खाने पर, वैशु बोली|



अरे पर ये तो बहुत जला है, रहने दे धुल मत साफ़ कर, इन्फेक्शन हो जायेगा, निशि चिंतित होते हुए बोली|

कोई नहीं मैडम ठीक हो जायेगा, वैशु बोली|

अछान, यहां बैठ मेरे पास, काम बाद में करना, निशि वैशु से बोली|
वैशु निशि के सामने की कुर्सी पर बैठ गई|


एक बात बोलूं मैडम आपसे? वैशु निशि से बोली|

हाँ बोल, निशि बोली|



मैडम, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो| कितने प्यार से बात करते हो| वैशु मासूमियत से बोली|



निशि जोर से हसी और बोली, बेटा तुम भी तो बहुत प्यारे हो|



मैडम, आप मुझे काम से कभी मत निकालना, मुझे अच्छा लगता है यहां, घर जैसा, वैशु बोली, फिर बोली, मैडम आप कितना काम करते हो? खाना ठीक से खाया करो,

निशि बड़े ध्यान से वैशु की बातें सुन रही थी, कितनी प्यारी बच्ची है सोच रही थी|
तभी निशि ने बीच में ही वैशु को बोला, वैशु सुन, तुम्हारे पती तुम्हें प्यार तो करते है ना?



हाँ मैडम, बहुत करते हैं, वैशु बोली|


सुनकर निशि को तस्सली हुई|


निशि बोली, सुन तुम्हें क्या अच्छा लगता है?



मैडम, मुझे गाना अच्छा लगता है बहुत, गाकर सुनाओ? वैशु ने निशि से पुछा


हाँ सुनाओ, निशि बोली|

लग जा गले की फिर ए हसीं रात हो ना हो.......वैशु ने गान शुरू किया और निशि उसकी आवाज़ सुनकर मंत्रमुग्ध हो गई|

गाना ख़त्म हुआ तो वैशु ने पूछा, मैडम कैसा था?


बहुत अछा, निशि बोलीं और अपनी जगह से उठी और वैशु के पास गई| उसके सर पे से हाथ घुमाया और बोली,


वैशु एक काम करते हैं, तुमने मैंने काम करने माना नहीं करूंगी पर एक बात तुम्हें भी माननी पड़ेगी, निशि बोली



हाँ मैडम, आपकी हर बात मानूंगी, वैशु बड़ी मासूमियत से बोली|



फिर एक मैडम हैं वो गाना सीखाती है, तुम्हें रोज़ वहां जाकर गाना सीखना पड़ेगा, निशि बोली, और सुन, अपने पति को बुलाकर लाना, मुझे बात करनी है, निशि आगे बोली|


निशि ने देखा वैशु की आँखों में एक चमक आ गई|


मैडम, कल लेकर आओ उन्हें? वैशु ने निशि से पूछा|



हाँ, लेकर आ, निशि बोली, निशि ने महसूस किया की वैशु उसकी ये बात सुनकर बहुत खुश हुई| श्याम को जब निशि घर आयी तो उसने रवि को सब बताया| रवि भी ये बात सुनकर खुश हुआ| अगले दिन वैशु अपने पती सुनील को लेकर निशि से मिलवाने लायी| निशि की बात सुनकर सुनील भी खुश हुआ|


बोला, मैडम, आप जैसे लोग कहाँ मिलते हैं हम जैसे को, आगे बोला, “मैडम मैं वैशु के गाँव का ही हूं| इसके पिताजी रोज़ पीते हैं, पुरे गाँव ने समझाया पर नहीं मानते| इसकी माँ ने फिर मुझसे शादी की| मेरा वतन भी सिर्फ 8000 है,| इसमें गुज़रा नहीं होता, इसलिए वैशु को काम करना पड राहा है| आप मिली तो मुझे चिंता नहीं पर मैं वो गाना सीखने के पैसे नहीं दे पाउँगा, सुनील बोला|



निशि मुस्कुराकर और बोली, अरे तुमसे किसने म्यानेज हैं, वो तो मेरी सहेली है , वो पैसे नहीं लेगी, निशि बोली|


सुनील ने आगे बढ़कर निशि के पैर पढ़े और बोला, मैडम मैं चलता हूं, काम पर जाना है, मेरे साब नाराज़ होंगे| सुनील वहां से चला गया|

वैशु जल्दी काम ख़त्म कर हम वो गाने की क्लास में जायेंगे| वैशु खुश हो गई, कुछ ही देर में निशि वैशु को लेकर अपनी सहेली मंजू के पास ले गई| उसी दिन से वैशु गाना सीखने लगी| वक़्त का पता ही नहीं चला| आठ महीने बीत गये, वैशु से अलग सा लग हो गया था निशि को| वो बहुत बातें करती निशि से, बहुत सवाल पूछती| निशि को उसकी मसुमियियत पर बहुत प्यार आता था|


तभी एक दिन मानो वैशु की जिंदगी फिर एक नयी करवट लेने चली हो, निशि को एक मेल आया, जिसमे इंडियन आइडल में वैशु को ऑडिशन के लिए चुन लिया था| निशि भूल ही गई थी की उसने जो वैशु के पहला गाना रिकॉर्ड किया था वो इंडियन आइडल वालो को भेज दिया था| निशि ने तुरंत रवि को ए खुश खबरी सुनाई, फिर सुनील को फोन किया और वैशु को लेकर घर बुलाया|


कुछ ही देर में किसी ने घर के दरवाजे की घंटी बजायी| निशि दरवाजा खोलने गई तो देखा सुनील और वैशु खड़े है| दोनों बहुत घबराये थे| सुनील निशि को देखते ही बोला,


मैडम इससे कोई गलती हुई हो तो माफ़ कर दीजिये पर इसे काम से मत निकालिए, मैं इसे बहु डाटा है|


 


निशि ने वैशु की तरफ देखा तो ऑंखें लाल थी उसकी, वो समझ गई की वैशु रोई है| निशि ने घुस्से में सुनील से पूछा, “ तुमसे किसने बोला की मैं वैशु को काम से निकाल रही हूं?

मैडम, आपने यूँ अचानक इसे लेकर घर बुलाया तो मुझे लगा, सुनील बोला|

बुलाने का ए मतलब नहीं होता की वैशु ने कुछ गलती की है, निशि बोली|

फिर मैडम, सुनील ने पूछा इतने में रवि भी ऑफिस से आ गया| हाथ में मीठायी का डब्बा था आते ही उसने डब्बा खोला का निशि को मिटाई खिलाई, फिल सुनील को दि, फिर वैशु की तरफ मुड़कर बोला,


ले बेटा मुह मीठा कर, अब तो तुम्हने मेहनत करनी है, वैशु और सुनील को कुछ नहीं समझ राहा था|



फिर निशि ने बैठकर उन दोनों को सब समझाया| फिर टीवी पर इंडियन आइडल दिखाया|


वैशु तो मानो कोई सपना देख रही हो| वो एकदम निशि के गले से लगकर रोने लगी|


निशि भी अपने आप को रोक नहीं पाई. रवि और सुनील की भी ऑंखें भर आयी|


वैशु निशि से बोली , मैडम पता नहीं मेरे जैसे ना जाने कितनी वैशु होंगी, काश सबको आप जैसी मैडम मिल जाएँ, तो सबकी ज़िन्दगी सुधर जाएगी|



मां


निधि भंडारे


 


राहुल ने अचानक घडी देखी, ६ बज गये थे, काम बहुत बाकी रह गया था| तभी उसकी नज़र रानू पे गई|


अरे रानू, क्या बात है? आज कैसे इतनी देर तक रुक गई? सतीश इंतजार कर रह होगा, राहुल ने पूछा|
उडा लो मजाक तुम, तुम्हारा वक्त आयेगा तब देखेंगे, रानू हस्ते हुई बोली.


तभी सखाराम, ऑफिस का पिओन आया और बोला


राहुल सर आपको बड़े साब ने तुरंत ऑफिस में बुलाया है,
रानू ने जैसे ही सुना हँसकर बोली, और उडाओ मजाक, अब देखो तुम्हारी क्लास लेंगे संजय सर|


राहुल मुस्कुराया और संजय सर के केबिन की तरफ चला गया|


मे आय कम इन सर?  राहुल ने पूछा|
यस माय डिअर, कम इन, संजय सर मुस्कुराते हुए बोले, “राहुल, सच में ऑफिस में तुम्हारे लोग हैं इसलिए हम इतना आगे बढे है|
थैंक यू सर, बस आशीर्वाद है, राहुल बोला|
एक जरुरी काम के लिए बुलाया है तुम्हें, संजय सर बोले|
हुकुम कीजिये सर, राहुल बोला|
कल रात तुमको कुछ जरुरी डॉक्यूमेंटस लेकर बिलासपुर निकलना होगा, वही पास एक गाँव हैं, करेली, वहां के पंच का साईन लाना है और ये काम सिर्फ तुम ही कर सकते हो, संजय सर बोले|
थोड़ी तकलीफ होगी तुम्हें क्योकि ट्रेन सिर्फ बिलासपुर तक जाति है| फिर वहां से तुम्हें करेली के लिए बस पकडनी पड़ेगी, संजय आगे बोले|
कोई बात नहीं सर, आय विल मैनेज, राहुल बोला|
तभी संजय ने ड्रावर में से कुछ पेपर निकाले और राहुल को दिये| साथ ही एक परचा दिया और बोला, इसमें पूरा पता है और सरपंच का फोन नंबर भी है| ट्रेन का टिकिट भी तैयार है तुम्हारा| कल रात को ७ बजे तुम्हारी गाड़ी है| जो सुबह 5 बजे बिलासपुर पहुंचेगी, संजय बोले|
जी सर, राहुल बोला|


कुछ परेशानी हुई तो फोन कर लेना मुझे, संजय मुस्कुराते हुए बोला, “अब जाओ और आराम करो, कल ऑफिस मत आना, संजय आगे बोले|
सर, मैं निकलू, राहुल ने पूछा|
यस राहुल, टेक केयर, संजय बोले|


राहुल संजय के केबिन से बाहर आया तो देखा रानू वही बाहर खडी उसका इंतजार कर रही थी|


राहुल को देखते ही उसने पूछा, ऑल फाइन?


हां रे, सब ठीक, राहुल मुस्कुराता हुआ बोला|


 


मैं डर गई की इतनी देर क्या हो रहा है, रानू चिंतित होते हुए बोली|


कल मुझे छुट्टी, राहुल मुस्कुराता हुआ बोला|
क्यूँ छुट्टी तुम्हे? ऐसे कौन से झंडे लगा दिये तुमने? रानू ने पूछा|


बॉस का फेवरेट हूं ना, राहुल रानू को चिडाता हुआ बोला|


जोक्स अपार्ट, रानू मुझे बिलासपुर जाना है कुछ ऑफिस का काम है, एक दिन में ही आ जाऊंगा डोन्ट वरी, राहुल मुस्कुराते हुए बोला|


ओके, टेक केयर, रानू बोली|


चलो निकलते हैं, लेट हुआ, राहुल बोला|


हाँ बाय, रानू बोली|
बाय, राहुल बोला और बैग लेकर निकल गया


घर पहुँचते पहुँचते 10 बज गया. बहुत अंधेरा था| 5 दिन में अमावस्या थी| राहुल के मन में सिर्फ बिलासपुर जाने का खयाल था| घर के दरवाजे पर खाने का डब्बा रखा था| राहुल ने दरवाजा खोला और डब्बा लेकर अन्दर आया|
मुह हाथ धोकर, खाना खाया और मोबाइल पर करेली ढूढने लगा, तभी उसका ध्यान टिकेट की तरफ गया| वो उठा जेब से टिकट निकाला और टाइम देखा| ठीक ७ बजे ट्रेन मैं स्टेशन से छुट ती है|
मन बडा बैचेन होरहा था| राहुल ने पानी पिया| दरवाजा खोला और बाहर टहलने निकल गया. तभी मोबाइल बजा तो देखा रानू का फोन था|


हेलो मिस्टर बिलासपुर, रानू हस्ते हुए बोली|


हेलो रानू, पहुंच गई घर, राहुल ने पूछा|


हाँ सतीष ने ड्रॉप किया, रानू बोली|


कल तो तुम आ नहीं रहे ऑफिस, हैना, “रानू ने आगे पूछा|


हां, कल तैयारी करूँगा थोड़ी, राहुल बोला, “पता करता हूं वहां से बस के टाइम”, राहुल आगे बोला|


चलो then, आराम करती हूं, टेक केयर, गुड नाईट, रानू बोली|


गुड नाईट, राहुल बोला|



राहुल ने फोन रख दिया,


राहुल अब बिलासपुर का ना सोचकर रानू के बारे में सोचने लगा|


कितना खयाल रखती है रानू उसका, सतीष कितना किस्मतवाला है जो रानू उसे मिली, राहुल ने सोचा|


चलते चलते वो वापिस घर आ गया| आकर लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया| ना जाने कब उसकी आँख लग गई|


सूरज सर पर आ गया था| आखों पर रोशनी पड़ी तो राहुल की नींद खुली| घडी देखी तो 9 बज रह था| राहुल चौक कर उठा|


हें भगवान, मैं भी ना कितना आलसी हो गया हूं, राहुल खुदसे ही बडबडाया|


जल्दी से राहुल नहाकर तैयार हुआ| भगवान को नमस्कार किया और नाश्ता करने निकल गया| मन ही मन सोच रहा था की आज तो पोहे ख़त्म होगये होंगे| जैसे ही होटल पंहुचा तो देखा गंगू टेबल साफ़ करवा रहा था|



राहुल को देखते ही गंगू बोला, अरे साब, आज आप इतनी देर से? ऑफिस की छुट्टी क्या?

वही समझ, राहुल मुस्कुराते हुए बोला, अच्छा सुन, क्या है खाने को? बहुत भूख लगी है, राहुल ने पूछा|
साब, इडली सांभर खायेंगे या? गंगू ने पूछा|
चलेगा, ले आ पर गरम गरम, राहुल बोला|



राहुल वहीँ कुर्सी पर बैठ गया और मोबाइल में मेसेज देखने लगा.


तभी गंगू गरम गरम इडली लेकर आ गया|


साब पहले खा लीजिये फिर मोबाइल, गंगू बोला|
राहुल ने मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया और खाने लगा|
इडली सांभर खाकर राहुल वापिस घर की तरफ निकल गया|


घर पहुचकर सोचा एक प्यांट शर्ट रख लूँ | एक ब्याग में प्यांट शर्ट रखकर राहुल बाझार चला गया| दो बिस्कुट पैकेट ले आया|

पता ही नहीं चला कब दिन निकल गया| तभी राहुल का फोन बजा| देखातों रानू का फोन था|


हेलो मि.बिलासपुर, रानू हस्ते हुए बोली|


हेलो मैडम, बोलिए, राहुल ने जवाब दिया.


निकल गये? रानू ने पूछा|
अरे बस दरवाजा ही बंद करने जा रहा था, घर के बाहर खड़ा हूं, राहुल बोला|
ओके, निकल जाओ नहीं तो लेट होगा, रानू बोली|


हैप्पी जर्नी, रानू फिर बोली|

थैंक यू , राहुल बोला और फोन रख दिया|


राहुल स्टेशन के लिए निकल गया| 10 मिनट में स्टेशन पहुच गया| प्लेटफार्म 3 पर गाडी आने वाली थी|


राहुल ने घडी देखी तो केवल 10 मिनिट बचे थे|


चारो तरफ बहुत लोग थे,


लोगों की हलचल बढ़ गई| तभी गाडी आकर रुकी| राहुल ने कोच नंबर देखा और 3 नंबर कोच में चढ़ गया|


अन्दर गया तो देखा वहां सिर्फ तीन लोग बैठे थे| उसने सीट नंबर देखा| बैग रखा और बैठ गया|

तभी सामने वाले आदमी ने पूछा


क्यूँ भैया, कहाँ जा रहे हो?


बिलासपुर, राहुल ने जवाब दिया|


अरे वाह हम भी वही जा रहे हैं| वो बोला|



जी अच्चा, राहुल मुस्कुराते हुए बोला|
तभी ट्रेन चल पड़ी| सभी आराम से अपनी जगह पर बैठने लगे| राहुल ने देखा गाड़ी में ज्यादा भीढ़ नहीं थी और वही स्टेशन पर मानो मेला लगा हो|
तभी सामने वाले ने पूछा, बिलासपुर के ही हो क्या?
राहुल बोला, नहीं, काम से जा रहा हूं|


तभी वो बोला, “हम तो वहीँ से हैं|


राहुल फिर बोला, मुझे बिलासपुर से आगे जाना है करेली|


करेली? उसने पूछा


अरे वहां के लिए तो केवल एक बस जाति है सुबह 7 बजे और वापिसी 7 बजे, वो आदमी राहुल से बोला|



पर ये गाड़ी तो 5 बजे पहुचती है ना? राहुल ने पूछा|


हाँ पहुचती तो है, वो बोला|


तभी राहुल सोच में पड गया| सोचने लगा की 5 बजे पहुचकर वो करेगा क्या? एक तो इतनी ठंड ऊपर से नयी जगह|


युही समय बीत गया| सभी सो गये| पर नींद मानो राहुल से कोसों दूर थी| रात भर बस ना जाने किस सोच में डूबा राहा|

ना जाने कब 5 बज गये। गाडी उस राईट टाइम थी। गाडी रुकी| वो आदमी भी उतर गया| जैसे ही राहुल नीचे उतरा देखा बिलकुल शांति थी| कुछ ही लोग थे जो उसके साथ उतरे थे, वो भी सब अपना अपना निकल गये|



राहुल ने इधर उधर देखा| घडी देखी तो 5.10 ही हुआ था| सोचा 2 घंटे क्या करूँ|


ठंड भी बहुत थी| तभी देखा दूर एक दुकान खुली थी| बैग लिए राहुल उस तरफ चल पड़ा|


दुकान के नजदीक पंहुचा तो देखा, एक छोटी सी लाइट जली थी और अन्दर नीचे कोई कम्बल ओढकर सोया था|


राहुल ने धीमे से आवाज लगायी, कोई है?


तभी खस्ते हुए एक आदमी उठा| राहुल ने देखा एक बुढा आदमी धीरे से उठा|


कौन है भाई? उसने खास्ते हुए पूछा|


बाबा, मुझे चाय मिलेगी क्या? राहुल ने पूछा|
हाँ बेटे, रुको| अंदर आओ यहां बैठो, वौठ्ते हुए बोला|
नहीं बाबा, ठीक है यहीं, बस चाय पिला दीजिये, राहुल बोला,
उठकर उसने एक पतिला लिया, दूध डाला, अदरक लिया और वही छोटा सा स्टोव था उसपर चडा दिया|

और बेटा कहाँ से आ रहे हो? बिलासपुर में कहाँ जाना है ? उसने पूछा|


बाबा, बिलासपुर में नहीं, करेली में काम है, राहुल बोला|

बेटा, करेली की बस 7 बजे है, तुम इतनी देर कहाँ खड़े रहोगे, अंदर आ जाओ और यहां बैठो, उसने बड़े प्यार से राहुल से कहा|

राहुल ने जुटे उतारे और अंदर चला गया| वही बाबा के बिस्तर पर बैठ गया| गरम गरम लगा, उसे थोड़ा सुकून मिला|
चाय पीते पीते दोनों की बातें होती रही| राहुल को लगा मानो ना जाने कबसे वो बाबा को जानता है|
तभी 6.40 हो गया| अंधेरा छट चूका था| राहुल ने बाबा से पूछा, बाबा, बस कहाँ से पकडनी पड़ेगी?

बाबा, बोले बस स्टेशन के बाहर ही मिल जाएगी, एक ही बस है जो वहां जाति है और वही बस शाम को वापिस आती है , वैसे तुम्हारी वापिसी कबकी है? उन्होंने आगे पूछा|
बाबा आज रात की ट्रेन है| राहुल बोला|



चलो फिर आ जाओ शाम को मिलते हैं बेटा, वो बोले|

राहुल ने जेब से 50 रुपये निकाले और बाबा को देने लगा| बाबा बोले, “ बाबा भी बोलते हो और पैसे भी देते हो बेटा|


नहीं बाबा, प्यार से दे रहा हूं बेटा समझकर| राहुल बोला और उनके सामने पैसे रख दिये और पैर पढ़ लिए|


बाबा की आँख भर आयी।


बोले,येसे बूढ़े को आजतक किसी ने इतनी इज्ज़त नहीं दी है।

राहुल बोला, बाबा शाम को मिलते हैं, बोलकर राहुल वहा से निकल गया|


स्टेशन के बाहर आते ही देखा तो सामने ही बस खडी थी| राहुल ने एक आदमी से जो वही खड़ा था, पुछा, भैय्या बस करेली जाएगी क्या?
हा जी, यही है, वो बोला।
राहुल तुरंत उसमे बैठ गया|


5 मिनिट में वो बस निकल गई| पहली बार राहुल ऐसी बस में बैठा था| वो सोच रहा था की जिन्दगी में भी कैसे कैसे मोड आते हैं| वो बाबा का सोच रहा था की जिन्दगी में भी कैसे कैसे मोड आते है| उस उम्र में भी चाय की छोटी सी दुकान चलाकर अपना गुजरा करते है| फिर उसने सोचा, अरे मैंने तो बाबा से उनके परिवार का पूछा ही नहीं| फिर सोचा कोई नहीं शाम को पूछूँगा | ये सब सोचते सोचते न जाने कब राहुल की नींद लग गई |
तभी एकदम राहुल को झटका लगा, उसकी नींद खुली तो देखा बस रुक गई| घडी देखी तो 10 बजे थे| सभी गाड़ी से उतरने लगे| वो समझ गया करेली आ गया|


राहुल जैसे ही गाड़ी से उतरा अचनैक एक औरत फटी हुई सारी पहने हाथ में एक कपड़ा लिए सफ़ेद बीखरे बाल, उसकी तरफ दौडकर आयी और उसके गले से लग गई |


राहुल एकदम डर गया|


वो बोली, मुझे पता था तु अपनी माँ को लेने आएगा , सब बोलते थे तु कभी नहीं आयेगा, देख तु आ गया, वो बोले जा रही थी और राहुल उसको दूर करने में लगा था| 
अरे मुझे छोडिये, अलग होइए, कौन हो आप? राहुल बोला|


उन्होंने उस औरत का हाथ छोड़ दिया. तभी कुछ लोग आये और उस औरत को अलग करने लगे|


बोले, “साब, ये पागल बुढिया है, जो भी शहर से जवान लड़का उतरता है उसेही अपना बेटा समझती है और पीछे पड जाति है|


राहुल को अजीब सा लगा, तभी कुछ लोगों ने ज़बरदस्ती उस औरत को अलग कर दिया और राहुल से बोले की साब आप जाईये हम इसे संभाल लेंगे|



वो औरत जोर जोर से चिल्लाने लगी| बेटा मुझे छोड़कर मत जा, चल अपनी माँ के साथ, घर चल|
ना जाने अचानक राहुल को क्या हुआ और वो जोर से उन लोगोसे बोला, इन्हें छोड़ दीजिये.


जैसे ही उन लोगों ने उस बुढिया का हाथ छोडा वो दौड़कर आकर राहुल के सीने से लग गई| राहुल ने देखा वो बहुत घबराई थी| राहुल बोला, “मत डरो अब आपको कोई नहीं पकड़ेगा|
राहुल की बात सुनकर वो एकदम खुश हो गई और बोली, “तु घर चलेगा ना माँ के साथ?

राहुल ने बस हमी भर दि | उस औरत ने राहुल का हाथ थमा और एक गली की तरफ मुड गई| राहुल चुपचाप उसके साथ चलता गया| तभी वो एक छोटी सी झोपडी के आगे रुकी और बोली, “तुझे याद ना अपना घर?
राहुल ने फिर मुस्कुराकर हमी भर डी.
उस झोपडी का दरवाजा बहुत छोटा था| वो बुढिया अन्दर गई और राहुल को बोली, “आजा बेटा आजा,
राहुल झुककर अंदर गया| बुढिया वही नीचे बैठ गई और उसको भी बैठने को बोली| राहुल वही बैठ गया| तभी उस बुढिया ने एक डब्बा निकला. उसे खोला तो राहुल ने देखा उसमे कुछ बिस्कुट थे| वो बोली, तुझे भूख लगी ना बहुत?



राहुल इससे पहले कुछ बोल पाता, वो बुढिया राहुल को अपने हाथ से बिस्कुट खिलाने लगी.



राहुल कुछ ना बोल पाया और बिस्कुट खाने लगा| वो राहुल से सर पर हाथ घुमाती, कभी उसका माता चूमती, कभी बालाएं लेती| तभी राहुल बोला, आप नहीं खाओगी?


तु खा लेगा, माँ का पेट भर जायेगा| वो बोली |

अचानक राहुल को काम याद आया | उसने घड़ी देखी, देखा तो 1 बज गया था | उसे याद आया की उसे वापिस भी जाना है. वो धीरे से बोला , मैं ज़रा काम करने जाऊ?


वो बुढिया बोली, “ तु वापिस छोड़कर तो नहीं जायेगा? राहुल ने देखा उस बुढिया के आँखों में आंसू थे|


राहुल ने उसका हाथ पकड़ा और बोला, आप आराम कर लों मैं जाकर आता हूं| तभी उसने देखा वो बुढिया एकदम सो गई| मानो बहुत थकी हो| राहुल मुस्कुराकर और धीरे से झोपडी के बाहर निकल आया| बाहर आकर उसने एक आदमी से पूछा की पंचायत कहाँ है|
उसने बताया की कुछ ही दुरी पर सामने एक लाल रंग की ईमारत है वही| राहुल उस और चल दिया| 5 मिनिट में ही उसे लाल रंग की ईमारत दिखी| वही एक आदमी बैठा था| राहुल ने सरपंच के बारे में पूछा| वो आदमी उसको अन्दर ले गया| राहुल जैसे ही अन्दर गया देखा सामने एक पगड़ी पहने एक बुज़ुर्ग बैठे हैं| मन में सोचा कल से मुझे केवल बूढ़े लोग ही मिल रहे है | सोचा वापिस जाकर रानू हो बताऊंगा|
तभी राहुल ने नमस्कार बोला| कुछ देर बाते की| सरपंच के साईन लिए|


तभी सरपंच बोले, “खाना खाकर जाईयेगा| राहुल ने मना किया तो उन्होंने लस्सी बुलवाई | राहुल ने लस्सी पी और सरपंच से इजाजत ली| राहुल वापिसी के लिए निकला, जैसे ही राहुल कुछ दूर पंहुचा देखा बहुत भीड़ जमा थी| उसे लगा ना जाने क्या हुआ? अभी तक तो कुछ ही लोग दिख रहेथे गाँव में| तभी उसने एक से पूछा, भैया, क्या हुआ? इतनी भीड़ कैसी?

वो बोला, कुछ नहीं बाबूजी, वो पागल बुढिया थी इस गाँव में वो मर गई|
सुनते ही राहुल का दिल बैठ गया| वो अपने काम में सुबह का किस्सा मानो भूल गया था| तभी एक आदमी बोला, “ इसकी लाश का क्या करे ? इसका तो कोई नहीं था|


तभी दूसरा बोला, बेचारी उम्र भर अपने लड़के का इंतज़ार करते करते मर गई|
राहुल को एकदम सदमा लगा, उसके सामने मानो सुबह का सब आँखों के सामने आ गया| कैसे उस बुढिया ने उसको बिस्कुट खिलाया| वापिस अपने को बोला ना जाने कब राहुल की आँखों से आसू बहने लगे| तभी एक आदमी बोला, चलो लाश का क्रिया कर्म कर दे, बेचारी बुढिया|


ये सुनकर अचानक राहुल बोला, “रुको, इनका क्रियाकरम मै करूँगा, मै हू इनका बेटा| सभीने मुडकर राहुल की तरफ देखा|
पर बाबूजी, एक आदमी बोला.

पर वर कुछ नहीं, मै हूं इनका बेटा, राहुल बोला,


सभी गाँव वालोकी मदद से पूरी तैयारी की गई| राहुल ने उस बुढिया को अग्नि दि, फिर वही खड़े होकर हाथ जोड़कर नमस्कार किया और बोला, “जा माँ अलविदा , आपने जाते जाते मुझ अनाथ को माँ के प्यार का अहसास दिलाया. जिस माँ के प्यार के लिए मैं जीवन भर तरसा, वो प्यार आपने मुझे कुछ पल में ही दे दिया| जा माँ अलविदा, अगले जनम में आप ही मेरी माँ बनना| और राहुल की आँखों से आसूं की झड लग गई| एक अनाथ को माँ का प्यार मिल गया था और एक माँ को दुनिया छोड़ते वक्त उसके बेटे का प्यार|







Tuesday, January 7, 2020

देश यही पागल बदलेगा


लगभग चालीस साल पहले प्रकाशित इन्‍द्रदेव भारती जी की कविता 'देश यही पागल बदलेगा' हाथ लगी तो सोचने पर मजबूर कर दिया. आप भी आनन्‍द लीजिए और झाडू वाले नेता के बारे में चालीस साल पहले की कल्‍पना का चमत्‍कार भी देखिए.


कविता के कॉपीराइट लेखक के पास है  



इन्‍द्रदेव भारती


वैशाली

  अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी , मै चौंक उठी थी   ...