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ग्रामीण भारत: समस्याएं और भी बहुत हैं

डाॅ. नरेन्द्र पाल सिंह एसोसिएट प्रोफेसर, वाणिज्य विभाग,  साहू जैन काॅलेज नजीबाबाद उ.प्र. 246763 ई-मेल: drnps62@gmail.com भारतीय कृषि संबंधी समस्याएं एवं समाधान भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होते हुए भी यहाँ गरीबों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। आजादी के बाद से देश का संतुलित विकास करने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास की नीति को अपनाया है। भारत की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका का साधन खेती है तथा देश की कार्यशील जनसंख्या का 52 प्रतिशत भाग कृषि पर निर्भर है, जिनमें 31.7 प्रतिशत कृषक के रूप में तथा शेष मजदूर के रूप में खेती में कार्यरत है, देश की कुल जनसंख्या का 72.2 प्रतिशत भाग गाँव में वास करता हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय खेती ही है हमारे यहाँ कुल कृषि भूमि का लगभग 66 प्रतिशत भाग खाद्यान्न फसलों में तथा शेष 34 प्रतिशत भाग व्यापारिक फसलों के काम में लिया जाता है, देश में जनसंख्या की अधिकता के कारण कृषि जोतों का आकार निरंतर घटता जा रहा है, यहाँ की 80 प्रतिशत जोते दो हेक्टेयर या इससे भ

आजीविका: बदलता ग्रामीण जीवन

अक्षि त्यागी जीविका की योजना बनाना बताता है कि हमें जीवन में क्या करना है और हम क्या कर रहे हैं? जीविका का चयन एक कुंजी का कार्य करता है। कोई व्यक्ति अपने बारे में विश्लेषण करके उचित निर्णय ले सकता है। जीविका का चुनाव हमारा भविष्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गाँवों के अधिकांश लोग अपनी आजीविका कृषि या हस्तशिल्प से अर्जित करते हैं। सीमित कृषि भूमि के कारण रोजगार की तलाश में लोग कस्बों और शहरों का रुख कर रहे हैं लेकिन आवश्यक योग्यता के अभाव में कई बार उन्हें रोजगार पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सरकार इन समस्याओं को दूर करने के लिए नई कृषि तकनीकों के प्रयोग द्वारा उसी भूमि से उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के साथ-साथ गाँव के भीतर या समीप ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय कृषक नीति का शुभारंभ कृषि और सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय द्वारा सितंबर 2007 में किया गया। इस नीति का लक्ष्य किसानों की शुद्ध आय में बढ़ोत्तरी करना और उन्हें उनकी फसलों का अच्छा मूल्य दिलाना है। सरकार भूमि और जल सुविधाओं के विकास के लिए काम कर रही है। इस नीति के तहत मंत्रालय के पास

शहर एवं गाँवों में खराब होता पेयजल 

डाॅ. रजनी शर्मा पीने का पानी उच्च गुणवत्ता वाला होना चाहिए क्योंकि बहुत सारी बीमारियां पीने के पानी के कारण ही घेर लेती हैं। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य पानी आपूर्ति नल से ही उपलब्ध होती है। यही पीने, कपड़े धोने या जमीन की सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। अच्छे स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसे बनाए रखने के लिए पेयजल और स्वच्छता-सुविधाएँ, मूल आवश्यकताएँ हैं। विभिन्न अंतरारष्ट्रीय मंचों से समय-समय पर इस पर विचार-विमर्श हुआ है।  जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पानी के महत्त्व का वर्णन वेदों और दूसरी अन्य रचनाओं में भी मिलता है। जल न हो तो हमारे जीवन का आधार ही समाप्त हो जाए। दैनिक जीवन के कार्य बिना जल के संभव नहीं हैं। धीरे-धीरे जल की कमी होने के साथ जो जल उपलब्ध है वह प्रदूषित है। जिसके प्रयोग से लोग गंभीर बीमारियों से परेशान हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। दुनियाभर में लगभग एक अरब लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। 'ग्लोबल एनवायरमेंट आउट लुक' रिपोर्ट बताती है कि एक तिहाई जनसंख्या पानी कि कमी की सम

हमारा भारत, स्वच्छ भारत

रश्मि अग्रवाल आज स्वच्छता की बेहद आवश्यकता है। आज हम अपनी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति पर गौरवान्वित हैं क्योंकि इसी के कारण हम अनेक सुख-सुविधाओं का उपयोग/उपभोग करते हुए जीवन यापन कर रहे हैं परंतु इनके कारण जहाँ जीवन में गुणवत्ता आई है वहीं पर्यावरण अपकर्षण यानि कचरा निपटान या उससे जुड़ी समस्याएँ भी उजागर हुई हैं। इस समस्या का विश्लेषण करें तो इसकी प्रकृति, दुष्प्रभाव व तरीकों सभी को गंभीरता से समझना होगा। 2 अक्टूबर 2019 तक स्वच्छ भारत के मिशन और दृष्टि को पूरा करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा कई सारे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई जो कि महान महात्मा गाँधी का 150वाँ जन्म दिवस होगा। ऐसा अपेक्षित है कि भारतीय रुपए में 62000 करोड़ अनुमानित खर्च है। सरकार द्वारा घोषणा की गई है कि ये अभियान राजनीति के ऊपर है और देशभक्ति से प्रेरित है। स्वच्छ भारत अभियान के निम्न कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य। - भारत में खुले में मलत्याग की व्यवस्था का जड़ से उन्मूलन। - अस्वास्थ्यकर शौचालयों को बहाने वाले शौचालयों में बदलना। - हाथों से मन की सफाई करने की व्यवस्था को हटाना। - लोगों के व

सबसे प्यारी संस्कृति हमारी

अमन कुमार भारत की संस्कृति महान है और इसका इतिहास गौरवशाली है। यहाँ के रीति-रिवाज, भाषाएँ और परंपराएँ परस्पर विविधताओं के बावजूद एकता स्थापित करती हैं। हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख जैसे अनेक धर्मों की जन्मभूमि होने का गौरव भारत को प्राप्त है। भारतीय संस्कृति को जानने से पहले संस्कृति शब्द को समझने का प्रयास करते हैं। 'संस्कृति' संस्कृत भाषा की धातु 'कृ' (करना) से बना है। 'कृ' धातु से तीन शब्द बनते हैं 'प्रकृति' (मूल स्थिति), 'संस्कृति' (परिष्कृत स्थिति) और 'विकृति' ;अवनति स्थितिद्ध। जब 'प्रकृत' या कच्चा माल परिष्कृत किया जाता है तो यह 'संस्कृत' हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो 'विकृत' हो जाता है। इस प्रकार संस्कृति का अर्थ है - उत्तम स्थिति।  रीति-रिवाज, रहन-सहन, आचार-विचार, अनुसंधान आदि से मनुष्य पशुओं से अलग दिखता है। यही सभ्यता और संस्कृति है। सभ्यता भौतिक सुखों की प्रतीक होती है और संस्कृति मानसिक समृद्धि की प्रतीक होती है। मानसिक उन्नति ही उत्तम संस्कृति का कारण बनती है। जिसमें धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों

मैं और मेरा विद्यालय

सुधीर राणा प्रभारी प्रधानाध्यापक -पू.मा. विद्यालय अकबरपुर आॅवला प्रकृति श्रेष्ठ कार्य के लिए श्रेष्ठ पर्सन का चुनाव करती है। मैं हृदय से प्रकृति का आभारी हूँ कि उसने अध्यापन जैसे श्रेष्ठ कार्य करने के लिए मेरा चुनाव किया। मैं और मेरी टीम विद्यालय के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं। पू.मा. विद्यालय अकबरपुर आंवला जनपद बिजनौर (उ.प्र.) के विकास खंड नजीबाबाद की ग्राम पंचायत अकबरपुर आंवला के ग्राम किशनपुर मुरशदपुर लिंक मार्ग पर 29.590 अक्षांश तथा 78.390 देशान्तर पर अवस्थित है। बेसिक शिक्षा परिषद्/शाखा द्वारा 2007 में विद्यालय की स्थापना हुई और 01 जुलाई 2008 से कक्षा 6-8 का संचालन आरम्भ हुआ। इसके पूर्व ग्राम पंचायत में प्राथमिक स्तर पर सरकारी तथा उच्च शिक्षा के लिये निजी संस्थाएं व मदरसे संचालित थे। सांविधानिक बाल अधिकार के अंतर्गत लागू कार्यक्रम सर्व शिक्षा अभियान में इस विद्यालय की स्थापना उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए की गई। आरंभ में विद्यालय में प्रधानाध्यापक श्री मदनगोपाल टाॅक व श्रीमती सरिता रानी, सहायक अध्यापक दो टीचर नियुक्त हुए तथा लगभग 900 वर्गमीटर में बने विद्यालय में लगभग 60-8

स्वच्छ भारत एवं ग्रामीण विकास

धनीराम ईमेल- dhaniram1251@gmail.com इस बार महात्मा गांधी की जयंती 'स्वच्छ भारत' अभियान के रूप में मनायी गई। स्वच्छता की आवश्यकता सभी ने महसूस की तो लोगों ने साफ-सफाई के इस नए अभियान को अपने-अपने तरीके से अपनाया। महात्मा गांधी का मानना था कि 'भगवान के बाद स्वच्छता का स्थान है।'यह भी विदित है कि सफाई न होने के कारण बहुत सी बीमारियां होती हैं, जिनके ऊपर बहुत सा पैसा खर्च होता है। उदाहरण के तौर पर भारत में गंदगी के कारण हर नागरिक को वार्षिक लगभग 6500 रुपए की हानि होती है। यह बीमारी के कारण होता है। अगर संपन्न लोगों को इससे दूर कर दिया जाए तो गरीबों पर सालाना 12-13 हजार का बोझ केवल गंदगी के कारण होता है। अगर स्वच्छता हो जाए तो फिर इस पैसे को अन्य कार्यों में लगाया जा सकता है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत इन पांच वर्षों में 62 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। अगले पांच वर्ष के बाद यानी 2019 में गांधीजी की 150वीं जयंती के मौके पर भारत स्वच्छ देशों की कतार में खड़ा होगा। यहाँ पर हम चर्चा कर रहे हैं कि इस मिशन को कैसे सफल बनाया जा सके, कैसे आम आदमी इस आंदोलन का हिस्सा बन सके? पंचायतों की भू