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मणिपुरी कविता: कवयित्रियों की भूमिका

प्रो. देवराज  आधुनिक युग पूर्व मणिपुरी कविता मूलतः धर्म और रहस्यवाद केन्द्रित थी। संपूर्ण प्राचीन और मध्य काल में कवयित्री के रूप में केवल बिंबावती मंजुरी का नामोल्लख किया जा सकता है। उसके विषय में भी यह कहना विवादग्रस्त हो सकता है कि वह वास्तव में कवयित्री कहे जाने लायक है या नहीं ? कारण यह है कि बिंबावती मंजुरी के नाम से कुछ पद मिलते हैं, जिनमें कृष्ण-भक्ति विद्यमान है। इस तत्व को देख कर कुछ लोगों ने उसे 'मणिपुर की मीरा' कहना चाहा है। फिर भी आज तक यह सिद्ध नहीं हो सका है कि उपलब्ध पद बिंबावती मंजुरी के ही हैं। संदेह इसलिए भी है कि स्वयं उसके पिता, तत्कालीन शासक राजर्षि भाग्यचंद्र के नाम से जो कृष्ण भक्ति के पद मिलते हैं उनके विषय में कहा जाता है कि वे किसी अन्य कवि के हैं, जिसने राजभक्ति के आवेश में उन्हें भाग्यचंद्र के नाम कर दिया था। भविष्य में इतिहास लेखकों की खोज से कोई निश्चित परिणाम प्राप्त हो सकता है, फिलहाल यही सोच कर संतोष करना होगा कि मध्य-काल में बिंबावती मंजुरी के नाम से जो पद मिलते हैं, उन्हीं से मणिपुरी कविता के विकास में स्त्रियों की भूमिका के संकेत ग्रहण किए ज

संत बाबा मौनी: इक पनछान 

डाॅ. प्रीति रचना  डुग्गर दे जम्मू सूबे दी धरती रिशियें-मुनियें, पीर-पगंबरे दी धरती ऐ। इस धरती पर केईं मंदर ते देव-स्थान होने करी इस्सी मंदरें दा शैह्र गलाया गेदा ऐ। जम्मू लाके च बाह्वे आह्ली माता दा मंदर, रणवीरेश्वर मंदर, रघुनाथ मंदर, आप-शम्भू मंदर, पीरखोह् मंदर, सुकराला माता बगैरा दे मंदर ते केईं सिद्धपुरशे दियां समाधियां बी हैन। उं'दे चा गै इक समाधी बावा मौनी जी हुंदी बी ऐ, जेह्ड़ी जम्मू जिले दी अखनूर तसील दे बकोर ग्रांऽ च ऐ। एह् ग्रांऽ जम्मू थमां 50 कि॰.मी॰. दूर चनाब दरेआ दे कंडै बस्से दा ऐ। इस दरेआ करी ग्रांऽ हुन चैथी बारी नमें सिरेआ बस्सेआ ऐ।   इस ग्रांऽ च इक राधा-कृष्ण दा मंदर बड़ा गै प्राचीन ऐ, जेह्दा निर्माण बावा मौनी होरें करोआया हा। बावा मौनी पैह्ले कश्मीर च 'रैनाबाडी' नांऽ दी जगह् रांैह्दे हे। ओह् शुरू थमां गै अध्यात्मिक प्रवृत्ति आह्ले हे। इक दंत कथा मताबक ओह् सन् 1650 दे कोल-कच्छ घरा निकली गे ते चलदे-चलदे अखनूर तसीलै दे पं´ग्रांईं नांऽ दे ग्रांऽ च आई गे हे। उत्थै उ'नें शैल घना जंगल दिक्खियै अपनी समाधी लाई लेई ही। किश ब'रें उत्थें तप ते प्रभु भजन करदे रे।

प्रताप सिंह पुरा (ललयाना) : इक पनछान / डोगरी लेख

शिव कुमार खजुरिया  तसील विशनाह् दा ग्रांऽ प्रताप सिंह पुरा ललयाना बड़ा गै म्शहूर ग्रांऽ ऐ। एह् जम्मू थमां लगभग 25 किलोमीटर ते विशनाह् थमां 6 किलोमीटर दी दूरी पर बस्से दा ऐ। इत्थूं दी कुल अबादी 663 ऐ ते जमीनी रकवा लगबग 550 धमाऽं ऐ। इत्थूं दे किश लोक मलाज़म न पर, ज्यादातर लोक जीमिदारी ते मजूरी करियै अपनी गुजर-बसर करा दे न। इस ग्रांऽ दे नांऽ बारै गल्ल कीती जा तां एह्दा नांऽ डुग्गर दे प्रसिद्व महाराजा प्रताप सिंह हुंदे नांऽ पर रक्खेआ गेदा ऐ। इस ग्रांऽ च बक्ख-बक्ख जातियें ते धर्में दे लोक आपूं- चें बड़े मेल जोल ते हिरख-समोध कन्नै रौंह्दे न। इत्थै उं'दे बक्खरे बक्खरे धार्मिक स्थान बी हैन। ओह् रोज इत्थै मत्था टेकियै, ग्रांऽ दी खुशहाली आस्तै मंगलकामना करदे न।    इस ग्रांऽ दी अपनी इक खास म्ह्ता ऐ। इत्थै भाद्रो म्हीने दी 8 तरीक गी बाबा तंत्र बैद जी दे नां पर बड़ा बड्डा मेला लगदा ऐ ते भंडारे दा आयोजन बी कीता जंदा ऐ। 8 तरीक कोला केईं रोज पैह्लें गै मेले च औने जाने आह्लें लोकें दी चैह्ल पैह्ल शुरू होई जंदी ऐ। इस दिन गुआंडी रियासतें ते आस्सै-पास्सै दे ग्राएं थमां ज्हारें दी गिनतरी च लोक बाबा जी दी स

मिली खुशबू चमन महका

डॉ. सुशील कुमार त्यागी 'अमित' मिली खुशबू चमन महका,  ये कैसी है बहार आयी मिली खुशबू चमन महका, ये कैसी है बहार आयी। न मैं समझा, न तुम समझे, कहाँ से ये फुहार आयी।। हुआ रँगीन ये मौसम, हवा भी गा रही गाना, जरा आना मेरे दिलवर, मेरे दिल से पुकार आयी।। खिले मेरे हसीं नग़में, तो ग़ज़लें संग क्यों रोयीं, यही मैं न समझ पाता, सदा गाती बयार आयी।। तराना प्यार का छेड़ा, अलापा राग जीवन का, हुआ पागल खुशी से मैं, तेरे स्वर से गुँजार आयी। खुला अम्बर खुली धरती, बसी इनमें तेरी यादें, कभी छुप-छुप कभी खुलकर, मेरे जीवन में हार आयी। 'अमित' नित गीत प्रीति के, सुनाता दुनिया वालों को, लबों पे खुशबू की थिरकन, हृदय से ये गुहार आयी।। 

माखनलाल चतुर्वेदी : कठिन जीवन का सृजन-धर्म

डॉ. रजनी शर्मा  'एक भारतीय आत्मा' माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1889 में हुआ था। बाबई में जन्मे माखनलाल जी का जन्म का नाम मोहनलाल था। उनके पिता श्री नन्दलाल जी व्यवसाय से अध्यापक और स्वभाव से आधुनिक संस्कारों तथा सेवाभावी चरित्र के स्वामी थे। माखनलाल चतुर्वेदी को वैष्णव-संस्कार अपने पिता से ही प्राप्त हुए थे। माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन पर उनकी माता जी का बहुत प्रभाव पड़ा था। उन्होंने अपनी माँ के विषय में स्वयं लिखा है -''मेरे जीवन की कोमलतर घड़ियों का आधार मेरी माँ है। मेरे छोटे से ऊँचे उठने में भी, फूला न समाने वाला तथा मेरी वेदना में व्याकुल हो उठने वाला, उस जैसा कोई नहीं।''1  माखनलाल चतुर्वेदी की माँ ममता, वात्सल्य, साहस, त्याग और मानव सुलभ आदर्श गुणों की प्रतिमूर्ति थी। माखनलाल जी को अपने पिता के साथ ही अपनी माँ से संकल्प-शक्ति, अन्याय का विरोध करने की भावना, संघर्ष से प्रेम और विपरीत परिस्थितियों में अदम्य साहस जैसे गुण प्राप्त हुए थे।  माखनलाल जी अपने प्रारम्भिक जीवन में बहुत ही नटखट प्रवृत्ति के थे। बालसुलभ नटखट स्वभाव के कारण उनके पड़ोसी भी परेशान रहते थे। इ

ताऊ जी

आलोक कुमार 'ताज़गी प्रदान करती ठंडी हवा, खुला चबूतरा, चैपाल, हुक्का गर्मियों की दोपहरी में पीपल की घनी छाँव के नीचे एक साथ बैठकर तास का खेल, बीच-बीच में जुमले, छींटाकशी ये मनोहारी दृश्य होते हैं गाँव के।' गगन गाँव की तारीफ करते-करते रुका, फिर एक छोटे से ब्रेक के बाद बोला 'ताऊ जी जैसे बुजुर्गों का अनुभव अगली पीढ़ी के ज्ञान में वृद्धि कर देता है।' 'चल छोड़ .... तेरे ताऊ जी क्या एनसाईक्लोपीडिया हैं?' एक मित्र ने गगन से कहा तो गगन बिना गुस्सा किए बोला- 'हाँ भाई! मुझे तो ऐसा ही लगता है।' 'चल गाँव तो चलना ही है ताऊ जी से मिलना भी हो जाएगा।' उसी मित्र ने कहा तो गगन ने जवाब दिया, 'बिल्कुल, बस कल ही तो मिलना है।  अपने गाँव की इसी तरह की अनेक विशेषताओं के बीच गगन अपने ताऊजी का अक्सर जिक्र करता रहता है। गगन के साथी भी देहरादून में कृषि वैज्ञानिक हैं। गगन शहर में पढ़ा जरूर है मगर गाँव की जरा-सी बुराई नहीं सुन सकता। उसके साथी जब भी उससे गाँव के बारे में पूछते तो बस जरा-सी शुरूआत की जरूरत होती। सभी मित्र जानते थे परंतु फिर भी गगन को छेड़ने की नियत से कुछ भी पूछ

कर्ज

अमन कुमार सावन का महीना बीत चुका था। आम की फसल इस बार कम ही थी, सो आम का समय भी गया ही समझो। कोयल की कूक तो बस अब अगले साल ही सुनने को मिल पाएगी। गर्मी के मारे बुरा हाल है। उमस भरी इस गर्मी से जमीन फट पड़ी है। यूँ समझो कि वो रोना चाहती है मगर उसकी आँखों का पानी सूख चुका है। अगर ऐसा ही रहा तो अबकी बार धान की फसल भी चैपट ही समझो। धान की पौध क्यारियों में ही सूख गई है। गन्ने की हालत और भी खराब। महेश साईकिल पर तेल की कैन लादे अभी गाँव में घुसा ही था कि उसका छोटा भाई दौड़कर उसके पास पहुँच हाँफते हुए बोला -'तेल मैं ले जाऊँगा भैया! तुम साईकिल से निकल लो, दो सिपाहियों के साथ अमीन आया हुआ है। उसने छोटे और भूरे को पकड़ भी लिया है।' सुनकर महेश की पिंडलियाँ काँप गईं। प्यास तो लग ही रही थी कि होंठों पर पपड़ी जम गई। पसीने की हालत यह थी कि मानो सोते फूटकर नदी बह निकली हो। उसने जल्दी-जल्दी तेल की कैन साईकिल के कैरियर से उतारी और साईकिल लेकर विपरीत दिशा की ओर तेज-तेज पैंडल मारते हुए चला गया। कहाँ जाएगा? उसे पता नहीं। अमीन से बचने के लिए बैठ जाएगा किसी पेड़ की घुटन भरी छांव में। कोई रिश्तेदार भी ऐसा